अक्तूबर 03, 2009

कल के लिए है मायावती का सोच.....

मायावती को घेरने की एक और कोशिश चल रही है। मूर्तियों के मामले में विपछी पार्टियों की आलोचना झेल रही उत्तरप्रदेश सरकार को सुप्रीम कोर्ट ने भी दो टूक कह दिया है कि २६०० करोड़ की लगत से पार्कों में मूर्तियाँ लगाने के कैबिनेट के फैसले की न्यायिक समिक्छा की जाएगी। फिलहाल कोर्ट ने निर्माण कार्य पर रोक लगा रखा है, जिसमे प्रदेश के कई शहरों में बन रहे पार्कों के अलावा नॉएडा में बन रहे अम्बेदकर पार्क भी शामिल है।
विचारनीये प्रश्न यह है कि एक गरीब प्रदेश की मुखिया, जहाँ की सरकार अशिछा , गरीबी,बेरोजगारी,किसानो की बदहाली,सुखा जैसे समस्याओं से जूझ रही है, २६०० करोड़ से स्थिति सुधारा जा सकता था, मायावती इतने रूपये पार्कों व नेताओं के मूर्तियाँ लगाने पर क्यों तुली हैं।
कहते हैं मायावती जमीन से शुरुआत कर आज राजनीतिक शिखर पर है। वो भी उस राज्य की जिसने देश को सबसे ज्यादा प्रधानमंत्री दिए हैं। जहाँ जातीयता की लडाई चरमसीमा पर होती है। ऐसे में मायावती का राजनीतिक सफर कितना मुश्किलों से गुजरा होगा ये मायावती से अच्छा कौन बयां कर सकता है। राजनीति, सत्ता एवं सत्ता के गलियारों का खट्टी-मिट्ठी स्वाद चखी मायावती आज हिंदुस्तान की एक परिपक्व नेत्री हैं, जिनका गिनती भारत के भावी प्रधानमंत्री में होती है। इतना परिपक्व नेत्री मूर्तियों व पार्कों के नामपर इतने रूपये खर्च कर केन्द्र सरकार, कोर्ट तथा विपछी पार्टियों का निशाना क्यों बन रही हैं। यह सिर्फ़ वोट की राजनीति है या कल का भारत के लिए कोई नया सोच? इसपर विचार करना होगा।
जो कांग्रेस तथा कांग्रसनीत सरकार मायावती की आलोचना कर रही है वह पिछले ६० सालों में क्या की है? हर शहर-नगर के चौक-चौराहों पर गाँधी परिवार के मूर्ति लगाने, सरकारी जनकल्याण योजनाओं का नाम गाँधी परिवार के किसी सदस्य के नाम पर रखने के अलावा किया हीं क्या है कांग्रेस ने? तब तो कोई विरोध नहीं हुआ? आज विरोध इसलिए हो रहा है कि रूपये मायावती द्वारा खर्च किये जा रहे हैं। कांग्रेस द्वारा होता तो आज भी कोई कुछ नहीं बोलता, तब लोगों को दलित प्रेम नज़र आता या सिर्फ जवाहर, इंदिरा, राजीव की मूर्तियाँ लगती, जिसके लोग आदि हों चुके हैं. इनकी मूर्ति मायावती भी लगवाती तो वो अच्छी रहतीं, केंद्र सरकार शाबाशी देती और मामला अदालत में भी नहीं जाता. लेकीन दिक्कत यह है कि मूर्तियाँ कांशीराम की लग रही है, अम्बेदकर की लग रही है, मायावती की लग रही है और यही लोगों को खटक रहा है.
मूर्तियों के सहारे हीं सही मायावती ने लोगों को अहसास करा दी कि कांग्रेस ने आजतक क्या की है। अगर सुप्रीम कोर्ट ने पार्क व मूर्तियों के निर्माण कार्य पर रोक लगा भी देती है तो यह मायावती की जीत होगी। क्योंकि मूर्ति लगाने व तुष्टिकरण की राजनीति कांग्रेस की देन है, देर हीं सही लोगों को समझ में आ गया होगा। इसलिए हम कह सकते हैं मायावती एक सोची-समझी रणनीति के तहत काम कर रही है. वह पढ़ी-लिखी तथा काबिल नेत्री हैं. वह समाज से अगड़ा-पिछड़ा, ऊँच-नीच का भेदभाव मिटाकर एक सभ्य समाज बनाना चाहती हैं, जहाँ हर कोई सामाजिक सम्मान के साथ जी सके. जरुरत है मायावती के हर चल को बारिकी से समझने की जिसमे कुछ सन्देश हैं कल के लिए.
चलते-चलते.......
राह चलते आजमाए गए हम
बाद इसके भी सताए गए हम
इस अदालत के अजब हैं फैसले
दोष उनका था बुलाए गए हम.

8 टिप्‍पणियां:

हिन्दीवाणी ने कहा…

आपके विचारों से मैं सहमत नहीं हूं। मूर्तियां लगाने से दलित चेतना नहीं आया करती। कांशीराम ने जब इस काम को शुरू किया तो उन्हें मूर्तियों की जरूरत नहीं पड़ी थी। मायावती के लिए मौका है, दलितों के लिए अभी बहुत कुछ किया जाना बाकी है। उन्हें उस पर ध्यान देना चाहिए। जनता के पैसे की इस बर्बादी का समर्थन तमाम दलित चिंता के बावजूद नहीं किया जा सकता। क्षमा करें।

CSK ने कहा…

माननीय लेखक महोदय ने बहुत ही बारीकी से इस मुद्दे का अद्ध्ययन किया है उनके लेख से तो यही मालूम पड़ता है.मगर यहाँ पर उन्होंने एक बात को शायद उतनी गंभीरता से नहीं लिया.क्या किसी नेता,मंत्री या सरकार को इस बात का अधिकार होना चाहिए कि केवल विरोधी को जवाब देने के लिए जनता की गाढ़ी कमाई को यूँ ही व्यर्त्थ में लुटा दिया जाए?या इसे ही हम परिपक्वता समझें?मायावती के अलावे भी ऐसे ढेर सारे नेता हैं जिन्होंने गरीबी से अमीरी तक का सफ़र भारतीय राजनीति में किया है.आखिर ऐसा क्यूँ होता है कि जब कोई गरीबी से अमीरी कि ओर बढ़ता है तो वोह गरीबी के उन दिनों को भूल जाता है जब वो अपनी कमाई या आय के हर हिस्से को सोच-समझकर खर्च करता था? किसी कि गलत नीतियों को गलत ठहराने के लिए हम भी उन्ही गलत नीतियों का प्रयोग करें क्या यही परिपक्वता है? ऐसी सोच आज के लिए हो या कल के लिए ,यह न तो सोचने वाले के लिए और न ही देश की गरीब और भोली जनता के लिए लाभप्रद है.

CSK ने कहा…
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avi-pankaj ने कहा…

aapne sahi kaha lekin aapke vicharon se mai pura sahmat nahi hu......

Unknown ने कहा…

.....kekin murtiyan lagane se samasyayen to door nahi hogi na?
6200 karod rupye yahan nahi hote....
samajik pariwartan ke nam par dhan ka itna barwadi ka mai samarthan kahin kar sakte.....

Unknown ने कहा…

aapne jo likha hai usase mai sahmat hu lekin ispar abhi or bahas honi chahiye....

Bablu ने कहा…

Kashiram or Abedkar Ki murtiyan jo lagi wo to sahi hai par mayawati jite ji marne pe kyon tuli huyi hai.

ranjit ने कहा…

क्या पता कल कोई नेता मायावती जितना मजबूत हों या नहीं. और मायावती तो सिर्फ अपना मूर्ति हीं लगवा रही है, किसी योजना का नाम तो उसके नाम पर नहीं है जैसे केंद्र सरकार सोनियां के नाम पर कई योजना शुरू कर दी है या वशुंधरा के समर्थक वसुंधरा देवी के रूप में पोस्टर बनवाए..... तब तो विरोध नहीं हुआ..... जब सोनिया के जिन्दा रहते उसके नाम पर सरकारी योजनायें चल सकते है तब मायावती अपना मूर्ति क्यों नहीं लगवा सकती है.......