नवंबर 29, 2008

गाँधी एक हीं था.

एक युवक,जो
बेटा है एक ऐसे घराने का
जिसके हाथो में रहती है
एक बड़े राजनीतिक दल की कमान
ख़ुद विदेशों में पढ़ाई करके
आता है भारत
और जुड़ता है
अपने परिवार के खानदानी पेशे से
निकल पड़ता है एक नया ढोंग रचने
भारत में ही भारत को खोजने
शायद,गाँधी बनने का ख्वाब है उसका
लेकिन उसे कौन समझाए
गाँधी एक हीं था
जो करता था

ट्रेन के तीसरे दर्जे में सफर
जिसे नहीं था मरने का डर
सिर्फ़ दलितों के घर खाना खा लेने से
कोई गाँधी नही हो जाता.