अप्रैल 29, 2012

सचिन को राष्ट्रपति बना देते !


सचिन रमेश तेन्दूलकर को राज्यसभा जाना चाहिए था या नहीं, इस विषय पर चौक-चौराहे से लेकर मीडिया और सोशल मीडिया तक बहस चल रही है। सचिन का निर्णय वाकई चौकाने वाला है। कांग्रेस पार्टी से लेकर राष्ट्रपति की बेचैनी तो समझ में आती है, सचिन के सामने कौन सी आफत आ गई थी कि 10 जनपथ में सर टेक आए। दरअसल आपत्ति सचिन  को राज्यसभा जाने या न जाने से नहीं है। ऐसा नहीं है कि सचिन को राज्य सभा जाने से हिन्दुस्तान की किस्मत रातो-रात बदल जाएगी या नहीं जाते तो कोई तुफान आ जाता। सच्चाई तो यही है कि तब भी कुछ नहीं होता अब भी कुछ नहीं होगा।
क्या कोई जवाब दे सकता है कि लता मांगेश्कर को राज्यसभा जाने से देश को कितना फायदा हुआ, शिवाय इसके कि देश के उपरी सदन में उनकी सीट हमेशा खाली ही दिखती है। हां, सचिन के नाम पर कुछ राजनीति जरूर हो जाएगी, जिसकी शुरूआत हो भी चुकी है। विडंबना देखिए, अगस्त 2005 से अफजल गुरू की फांसी की फाईल गृह मंत्रालय से राष्ट्रपति भवन के बीच झूल रही है, एक निर्णय लेने में शर्म महसुस हो रही …और सचिन तेन्दुलकर के नाम पर चंद घंटों में सारी फाइलें और आॅफीसियल औपचारिकताएं पूरी हो गई। देश समझ रही है कि कांग्रेस की ये चाल आगामी चुनाव को लेकर है। कॉमनवेल्थ घोटाले से लेकर 2-जी स्पेक्ट्रम और कोयला घाटाले से तथा पी.चिदंबरम और अभिषेक मनु सिंघवी के कारनामों से पार्टी और सरकार के चेहरे पहले से ही काले पड़े है। उपर से बाबा रामदेव और अन्ना हजारे की हरकतें सरकार को कटघरे में खड़ा करते रहती है। ऐसे में सरकार को कुछ ऐसे मामले चाहिए जिससे अपना चेहरा थोड़ा ठीक-ठाक कर सके ताकि जनता उन्हें पहचान सके। इसके लिए सचिन तेन्दुलकर एक अच्छा विकल्प हैं। इस चाल के साथ ही सरकार और पार्टी ने एक बड़ी साजिश रची है। देश भर में सचिन को भारत रत्न देने की मांग उठती रही है। कांग्रेस कभी नहीं चाहेगी कि सचिन को यह सम्मान मिले। साथ ही वह यह भी नहीं चाहती कि देश में कोई ऐसा चेहरा उभरे जो गांधी परिवार से बड़ा हो।
विश्वास न हो तो इतिहास के पन्ने उलट सकते हैं। आपने देखा कि किस प्रकार महानायक अमिताभ बच्चन को पहले राजनीति में लाया गया फिर बोफोर्स में फंसाया गया। भोले-भाले सचिन के साथ भी ऐसा ही छल किया जा सकता है। यहां समस्या यह है कि सदन में प्रतिदिन नए-नए मुद्दों पर बहस होते हैं। ये क्रिकेट का मैदान नहीं है कि जितना चुप रहेंगे उतना महान कहलाएंगे। यहां तो बोलना ही पड़ेगा। और जब न ही बोलने के इरादे से आएंगे तो ऐसे आने से तो अच्छा है न आना। जब आप किसी समस्या पर अपनी बात रखेंगे या किसी पार्टी के पक्ष में अपनी बात रखेंगे उसी समय सचिन अपना विरोधी गुट तैयार कर लेंगे। और शायद कांग्रेस यही चाहती भी है कि सचिन के खिलाफ बोलने वाला भी गुट तैयार हो ताकि उन्हें भारत रत्न  देने की मांग भी कमजोर पड़े और उनकी लोकप्रियता भी घटे।
सचिन के प्रशंसक इस बात से ज्यादा खफा नहीं हैं कि उनके भगवान राज्यसभा क्यों जा रहे, बल्कि उन्हें इस बात का मलाल है कि सचिन आनन-फानन में 10-जनपथ में हाजिरी क्यों लगा आए? कांग्रेस की चाल और चरित्र को समझने वाली देश की जनता समझ रही है, अगर चुक गए तो बस सचिन। अगर सरकार और कांग्रेस पार्टी सचिन का सम्मान ही करना चाहती है तो एक ही बार देश का राष्ट्रपति ही क्यूं नही बना देती है? कोई विवाद भी नहीं होता। ऐसे भी भारत में देश के राष्ट्रपति को काम ही कितना होता है! जब देश के एक सांसद को आईपीएल के बाजार में बिकते देखना अच्छा लगेगा, और सरकार के अनुसार यह देश की भावना और सचिन का सम्मान है, तो शान से सीना चौड़ा हो जाता जब राष्ट्रपति की निलामी भी आईपीएल के बाजार में होती!