मई 30, 2011

... कि पब्लिक सब जानती है!

तीन दिन, छह विधानसभा क्षेत्र और तीस गाँव
एक टीवी न्यूज़ चैनल के तरफ से एक रिसर्च प्रोजेक्ट के लिए उत्तर प्रदेश के गाँव घुमने का मौका मिला. मैंने तीन दिन में छह विधानसभा क्षेत्र के तीस गावों का दौरा किया. जिसमें बुलंदशहर, बरौली, अलीगढ़, खुर्जा तथा कोल विधानसभा शामिल है. मैं वहां के अनुभवों को आपके साथ शेयर करना चाहता हूँ.

मैंने पाया कि राहुल गाँधी चाहे जितनी भी नौटंकी कर लें, आम पब्लिक सच्चाई जानती है. भट्टा-पारसौल गाँव में राहुल गाँधी के धरना को लोग मात्र दिखावा मानते हैं. आधी आबादी को तो ये भी पता नहीं है कि भट्टा-परसौल में हुआ क्या था? जिन्हें पता है उनमें से काफी लोग इस घटना के लिए राज्य की मायावती सरकार से ज्यादा केंद्र सरकार को दोषी मानते है. क्यूंकि भूमि अधिग्रहण बिल केंद्र सरकार के अधीन ही आता है. कई गाँव में मायावती के खिलाफ़ आक्रोश है. मगर आगामी विधानसभा चुनाव में वोट देने की बात पर वे बहुजन समाज पार्टी को ही अपना मत देने की बात करते हैं, खासकर जाटव जाति बहुल इलाको में.

सवर्ण बहुल गावों में मायावती सरकार से लोग जबरदस्त गुस्सा में हैं ये बात बिलकुल सही है. मगर वे स्वीकार करने से नहीं हिचकते कि मायावती के राज में उत्तरप्रदेश में विकास के काम हुए हैं. कानून का राज स्थापित हुआ है, स्वास्थ तथा शिक्षा के क्षेत्र में व्यापक सुधार हुए हैं. उन्हें दलितों के लिए अलग से चलाये जा रहे योजनाओं से आपत्ति है. सवर्ण जाति के लोग खासकर ब्राम्हण बसपा के खिलाफ तो हैं मगर वे भाजपा तथा कांग्रेस समर्थक खेमों में बंटे हुए हैं.

भट्टा-पारसौल घटना के बाद सबसे ज़्यादा नुकसान समाजवादी पार्टी तथा भारतीय जनता पार्टी का हुआ है. कांग्रेस मुख्य विपक्षी पार्टी के रूप में उभर रही है. मुस्लिम मतदाता बसपा और कांग्रेस खेमों में बंटे हुए हैं.

एक बात और जो बाहर निकलकर आई कि प्रदेश में शिक्षा और बेरोजगारी की हालत बहुत ख़राब है. खासकर ग्रामीण महिलाएं अशिक्षा की अभिशाप झेलने को मजबूर हैं.

बुलंदशहर के गंगेरा(मुस्लिम बहुल)गाँव में छठी से आठवीं कक्षा के विद्यार्थियों ने मुझे घेर लिया और कहा कि जूनियर हाई स्कूल,गंगेरा में परीक्षा के लिए उन्हें कॉपियां नहीं दी जाती है. एक रूपये की दर से बाहर से खरीदनी पड़ती है. बच्चों से झाड़ू लगवाया जाता है. उनकी भोली नज़रें मीडिया की ओर से गयी टीम को अपेक्षा की नज़र से देख रही थी. शिक्षा का अधिकार का हनन कैसे होता है, अगर आप देखना चाहते हैं तो बुलंदशहर के गंगेरा गाँव जाकर देख सकते हैं.

भट्टा-पारसौल कांड के बाद टीवी चैनलों पर जिस प्रकार ख़बरें परोसी गई उससे लगता है कि मायावती का सिंहासन डोलने वाला है. मगर ज़मीनी हक़ीकत बताता है कि लखनऊ की कुर्सी फ़िलहाल मायावती को छोड़ने को तैयार नहीं है.