जून 02, 2011

'स्टेटस सिम्बल' बन गया है धुम्रपान

एक दिन 'नो स्मोकिंग', बाकी दिन?


31 मई को पूरी दुनिया में 'वर्ल्ड नो टोबेको डे' मनाया गया. भारत के अख़बारों में सरकार के द्वारा बड़े-बड़े विज्ञापन छपवाए गए, जैसे इन विज्ञापनों को देखकर लोग 2 दिन में सिगरेट पीना या तम्बाकू सेवन करना छोड़ देंगे. अजीब विडंबना है, साल के एक दिन 'नो स्मोकिंग' के लिए नसीहत, बाकी दिन टीवी. चैनलों तथा अख़बारों में तंबाकू सेवन के लिए उत्तेजक विज्ञापन. वाह...क्या बात है!

हम जिस तंबाकू की बात कर रहे हैं उससे संबंधित कुछ आंकड़ों पर विचार करते हैं. विश्व स्वास्थ्य संगठन(W.H.O) के रिपोर्ट के अनुसार तंबाकू के कारण पूरी दुनिया में 50 लाख लोग अपनी जान गंवा देते हैं, जिसमें युवाओं संख्या सर्वाधिक है. 50 लाख लोगों में 6 लाख वे लोग हैं जो धुम्रपान नहीं करते हैं लेकिन तंबाकू के धुएं के संपर्क में आने के कारण मौत का शिकार हो रहे हैं. भारत में सार्वजनिक स्थानों पर धुम्रपान पर पाबंदी है, फिर भी कितने लोग नियन का पालन करते हैं जगजाहिर है.

सिगरेट के धुएं के छल्ले में युवा वर्ग तेजी से फंसता नज़र आ रहा है. शुरू-शुरू में दोस्तों के साथ पैदा हुआ शौक धीरे-धीरे आदत में शुमार हो जाता है. देश में 17 साल से कम उम्र के 9.6 फीसदी बच्चे धुम्रपान करते हैं. ये आंकड़े भारत सरकार के स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय की तरफ से कराए गए मुंबई के इंटरनेशनल इंस्टीच्यूट फॉर पोपुलेशन साइंस के सर्वे में सामने आये हैं. स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के रिपोर्ट में कहा गया है कि तंबाकू 4000 तरह के खतरनाक रसायनों का मिश्रण है. जिसमें 100 से अधिक तरह के जहरीले पदार्थ, कैंसर का कारण बननेवाले 63 नशीले पदार्थ शामिल है. बीड़ी में सिगरेट के मुक़ाबले तंबाकू की मात्रा कम होती है, लेकिन यह शरीर में अधिक मात्रा में निकोटीन, बैंजो, पायरीन तथा अन्य मादक पदार्थ छोड़ती है. निकोटीन नशे का आदि बनाता है, बैंजो तथा पायरीन कैंसर का कारण बनता है. इससे साफ है कि कैंसर धुम्रपान जैसी बीमारियों को दावत देता ही है, साथ ही अपने आसपास बैठे लोगों को भी मौत के मुंह में भेज रहा है.उदहारण के तौर पर एलर्जी, दमा, साँस की बीमारी, टीबी, मृत शिशु पैदा होना, खाज-खुजली, हार्ट-अटैक. सीने में दर्द, स्ट्रोक मस्तिष्क आघात इसी की देन है.

आज धुम्रपान करीब 70 फीसदी लोग क्रोनिक पाल्मोनरी आक्सट्रकटीव बीमारी से ग्रसित हैं. कैंसर से होनेवाली 30 फीसदी मौत सिगरेट के सेवन से होती है.

'टोबेको एटलस' के रिपोर्ट के अनुसार इस साल दुनिया भर में 60 लाख लोगों को मारे जाने की संभावना है, जो तंबाकू का सेवन करते हैं. एक तरफ दुनिया मंदी की मार से उबर नहीं पा रही है तो दूसरी ओर तंबाकू से जुड़े उत्पादों पर 500 अरब डॉलर की राशी खर्च होने का अनुमान है. 'टोबेको एटलस' के तीसरे संस्करण में दुनिया भर में तंबाकू के इस्तेमाल, उसके विनियमन, कीमतों आदि के बारे में जानकारी दिया गया है. जिसमें यह भी कहा गया है कि प्रत्येक आठ सेकेण्ड में एक मौत तंबाकू के कुप्रभाव के कारण होती है.

इतने भयावह आंकड़ों के बावजूद आज के युवा वर्ग आँख मुंदकर इस ज़हर का सेवन कर रहे हैं. आधुनिकता के दौड़ में हुक्का पीना इन दिनो शहर के युवाओं का नया शगल बन गया है. रॉक-म्यूजिक और रंग-बिरंगी रोशनी में अपनी जिंदगी अंधकार की ओर ले जा रहे हैं. वे जानकर भी अनजान बनते हैं और दिखाते ऐसे हैं जैसे...! शहर की ये गंदी हवा अब गाँव की गलियों में भी पहुँच चुकी है. अब ग्रामीण इलाकों में भी कम उम्र के बच्चे अपनी ज़िन्दगी को धुंए में उड़ाते नज़र आ रहे हैं. और तो और... सरकार के इस नियम की भी धज्जियां उड़ा रहे हैं जिसमें विश्वविद्यालयों और कॉलेजों के परिसर से 100 मीटर की परिधि में तंबाकू उत्पादों की बिक्री तथा सेवन पर रोक लगाने का आदेश दिया गया था. जबकि सच्चाई यह है कि कॉलेजों तथा विश्वविद्यालयों में इन उत्पादों का बड़ा उपभोक्ता वर्ग मौजूद है. तंबाकू उत्पादों का सेवन शिक्षा संस्थानों में आज फैशन की तरह 'स्टेटस सिम्बल' बन गया है.

धुम्रपान पर रोक न लग पाने का मुख्य कारण सरकार की ढूल-मूल नीति है. एक तरफ सार्वजानिक स्थानों तथा शिक्षण संस्थानों में तंबाकू सेवन पर प्रतिबंध लगाने का दिखावा तो करती है मगर तंबाकू उत्पादन कंपनियों पर प्रतिबंध लगाने की हिम्मत इस निकम्मी सरकार के पास नहीं है. कोई कदम उठाती भी है तो उसके पीछे एक बड़ा रहस्य छुपा रहता है. यह आदेश जारी किए अभी ज़्यादा दिन नहीं हुए हैं कि गुटखों की प्लास्टिक पैकेजिंग नहीं की जाएगी. प्लास्टिक की जगह कागज का इस्तेमाल किया जाएगा. इसका नतीजा यह हुआ कि एक-दो रुपए में बिकनेवाले गुटखे चार-पांच रुपए में बिकने लगे. सरकारी नियमों की आड़ में इसका लाभ सरकारी बिचौलियों सहित कंपनियों को हुआ और हो रहा है.

एक दिन के विज्ञापन के द्वारा सरकार हमें तंबाकू के सेवन से होनेवाली बीमारियों से आगाह तो करती है मगर उत्पादक कंपनियों के दवाब में सरकार सिगरेट, बीड़ी और गुटखा के पैकेट पर 'तंबाकू सेवन से मौत' की चेतावनी छापने का निर्देश लागू नहीं कर पा रही है. हमारे यहाँ पैकेट के 40 फीसदी हिस्से में 'तंबाकू सवास्थ्य के लिए हानिकारक है' चेतावनी छपी होती है, जबकि वेनेजुएला तथा पनामा में पुरे डब्बे पर तस्वीर सहित चेतावनी छपी होती है. यानि हमारी सरकार स्वास्थ्य के प्रति असंवेदनशील है और उससे कुछ भी अपेक्षा करना बेमानी है.

मेरी हैसियत इतनी तो नहीं कि मैं आपको धुम्रपान करने से मना करूँ. आप जो चाहें पीएं...मगर थोड़ा सोच कर कि आप क्या ले रहे हैं. आप सिगरेट पी रहे हैं...आप गंदी हवा पी रहे हैं...आप ज़हर पी रहे हैं! ये जानकर भी आप स्मोकिंग करते हैं तो आपका मालिक उपरवाला ही है.