अक्तूबर 17, 2009

व्हाइट हाउस में दिवाली...

सबसे पहले तमाम देशवासियों, मित्रों, ब्लॉग साथियों, एवं पाठकों को दिवाली की ढेर सारी हार्दिक शुभकामनायें!
यूँ तो हम हर साल दिवाली मानते हैं। पर इसबार की दिवाली कुछ खास है। हिन्दुओं का यह महान पर्व अब अपनी रौशनी की चपेट में व्हाइट हाउस को भी ले ली है। कहते हैं न ये दीया जहाँ भी रहेगा रौशनी लुटायेगा। अब व्हाइट हाउस में रौशनी लुटा रहा है। अमेरिकी राष्ट्रपति बराक हुसैन ओबामा ने वैश्विक शान्ति के लिए वैदिक मंत्रोच्चारण "तमसो माँ ज्योतिर्गमय॥" के बीच व्हाइट हाउस में दीप जलाकर दिवाली मनाई और वे इस पर्व पर व्यक्तिगत तौर पर शुभकामना देने वाले पहले अमेरिकी राष्ट्रपति बन गए। व्हाइट हाउस के ईस्ट रूम में वुधवार को हुए एक कार्यक्रम में ओबामा के कहा "मैं समझता हूँ कि यह उपर्युक्त समय है जब हम इस कार्य की शुरुआत छुट्टियों के समय दिवाली से कर रहे हैं, जो बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतिक है।" इस प्रकार ओबामा व्हाइट हाउस में दिवाली मनाने वाले पहले राष्ट्रपति बन गए हैं। इससे दुनियां भर के करोड़ों हिन्दुओं, जैनियों, सिखों, और कुछ बौद्ध धर्मावलम्बियों के प्रकाशोत्सव का आधिकारिक सम्मान हुआ है।
नोबेल शान्ति पुरस्कार से सम्मानित बराक हुसैन ओबामा द्वारा व्हाइट हाउस में दिवाली मनाना तथा पुरे विश्व को शान्ति का संदेश देना एक नई पहल है। इससे अमरिका में रह रहे हिन्दुओं के अलावा तमाम भारतीयों को खुश होना स्वाभाविक है। व्हाइट हाउस में हिंदू पंडित द्वारा संस्कृत में वैदिक मंत्रोच्चारण व ओबामा द्वारा उस पंडित को सम्मानित करते देखना सुखद अनुभव रहा। ऐसा लगा ओबामा भले हीं शान्ति के लिए अभी बहुत कुछ नहीं किए हों लेकिन वे करना चाहते हैं। नोबेल शान्ति पुरस्कार ने उनकी जिम्मेदारी और बढ़ा दी हैं। वे भाषा, जाती, धर्म-संप्रदाय से ऊपर उठकर पुरी दुनिया में शान्ति लाना चाहते हैं, जरुरत है उनकी भावना को समझने की, सहयोग करने की।
पूर्ववर्ती राष्ट्रपतियों ने अमेरिका का इमेज हीं ऐसा बना दिया है कि लोग अमेरिका को हमेशा शक की निगाह से देखते हैं। जॉर्ज बुश ने तो हद हीं कर दी थी। पाकिस्तान का मसला हो या अफगानिस्तान या फिर इरान, बुश का रवैया संदेह से परे नहीं रहा। बुश साहब इराक में हीं परेशान रहे। रही-सही कसर मुन्तजिर-अल-जैदी ने पुरी दी। अमेरिका का इज्जत इराक में तार-तार हो गया।
बिल क्लिंटन के समय क्लिंटन एवं रुसी राष्ट्रपति ब्लादिर पुतिन के साथ एक ही मेज पर तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को डिनर करते देखना बड़ा दिलचस्प था। तब भारतीये शक्ति का एहसास दुनियां के दोनों शक्तिशाली देशों के राष्ट्रध्य्छों को हो चुका था। अब ओबामा इराक सहित पुरे विश्व में शान्ति लाने का प्रयास कर रहे हैं, लेकिन पाकिस्तान को सहयोग राशिः अभी भी जारी है। व्हाइट हाउस में घी का दीपक जल चुका है, लेकीन उसकी रौशनी से बराक ओबामा पाकिस्तान के हरकतों को पढ़ पाते हैं या नहीं यह तो उनकी बौधिक छमता पर निर्भर है। अगर ऐसा हुआ तो वे दुनिया के लिए इतिहास पुरूष बन जायेंगे, नहीं तो लोग यही कहेंगे दीपक तले अंधेरे में रह गए ओबामा। और-तो-और- नोबेल पुरस्कार का भी अपमान होगा।
मैं यही दुआ करता हूँ कि बराक हुसैन ओबामा ने बुराई पर अच्छाई की जीत की शुरुआत दिवाली के दिन से करने को कहा है, उनका प्रयास सफल हो। हमारी शुभकामनायें उनके साथ है।
चलते-चलते.....
एक वो दिवाली थी एक यह दिवाली है
उजड़ा हुआ गुलशन है रोता हुआ माली हा
बाहर है उजाला मगर दिल में है अँधेरा

समझो न इसे रात यह है गम का सवेरा
क्या दीप जलाएं हम तकदीर हीं काली है
एक वो दिवाली थी एक यह दिवाली है।

1 टिप्पणी:

CSK ने कहा…

यह वही अमावस है जिसमे अँधेरा जग में छाता है..
पर अँधेरे से निकल तभी दीपक रोशन सा आता है..
सबकी दुनिया को कर रोशन खुशियों का राग सुनाता है..
ऐसे हो जग जगमग सबका हर पल ये वो समझाता है...
इस दीवाली में दिल अपना यूँ सूना-सूना सा लागे,
पर होठों पे मुस्कान तेरी मन को मेरे शीतल लागे...
अब रब से बस इतना कह दूं ये दुआ हमारी सुन लेना..

चम्पक
के सब मित्रों को तू शुभ-दीवाली कह खुश रखना....!