मार्च 21, 2016

नीतीश का नया दांव क्या सफल होगा यूपी में?

विधानसभा चुनाव के पहले चार दलों के विलय की तैयारी

रंजीत रंजन

बिहार विधानसभा चुनाव के पहले जनता परिवार के छः दलों के विलय का प्रयास असफल रहने के बाद जदयू नेता और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने आगामी उत्तरप्रदेश विधानसभा चुनाव के मद्देनजर एक नया दांव खेला है। चार दलों जदयू, राष्टीªय लोकदल, झारखंड विकास मोर्चा(प्रजातांत्रिक) और समाजवादी जनता पार्टी का बिहार, झारखंड और उत्तरप्रदेश में विलय की तैयारी चल रही है। इस सिलसिले में कई दौर की उच्च स्तरीय बैठकें हो चुकी हैं। इससे पहले बिहार विधानसभा चुनाव के पहले जनता दल (सेक्युलर), जदयू, राजद, इंडियन नेशनल लोक दल, समाजवादी जनता पार्टी  और समाजवादी पार्टी के विलय के असफल प्रयास हो चुके हैं। सारे गुटों ने मिलकर सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव को नए दल का मुखिया भी घोषित कर दिया था, लेकिन चुनाव के ठीक पहले सपा ने महागठबंधन के खिलाफ अपने उम्मीदवार खडे़ कर दिए थे। यूपी चुनाव के पहले एक और विलय का प्रयास चल रहा है। देखनेवाली बात होगी नीतीश कुमार का यह दंाव सफल होता है या नहीं। 
यूपी की वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य पर गौर करें तो ये चारो दल हाशिए पर हैं। विधानसभा चुनाव 2012 में राष्ट्रीय लोकदल को केवल 9 सीटें मिली थीं जबकि जदयू खाता भी नहीं खोल पाई थी। 1991 में यूपी में जनता दल के 22 सांसद थे, जब मुलायम सिंह यादव और चंद्रशेखर ने वीपी सिंह से हटकर समाजवादी जनता पार्टी बनाई थी। तब से राज्य में जनता दल और बाद में जनता दल युनाईटेड का प्रभाव घटता गया। 1996 में शरद यादव की अनुवाई वाली इस पार्टी के पास 6 विधायक थे, जो 2002 में यह संख्या घटकर केवल 2 रह गई। आज राज्य में जदयू की स्थित बहुत ही खराब है, उसका एक बड़ा कारण राज्य में पार्टी कैडर का नहीं होना है। वहीं राष्ट्रीय लोकदल का दायरा भी घटता जा रहा है। 2007 के चुनाव में रालोद ने 10 और 2012 में 9 सीटें ही जीती थीं। समाजवादी जनता दल की हालत भी बेहद खराब है। दूसरी ओर पूर्व मुख्यमंत्री बाबुलाल मरांडी को भी झारखंड में जदयू जैसा सहयोगी की जरूरत है। झारखंड में भाजपा मामूली बहुमत के साथ सत्ता में है तो यूपी में भाजपा सत्ता में वापसी के लिए विसात तैयार कर रही है। राज्य की जनता ने 2007 में बसपा को तो 2012 में सपा को पूर्ण बहुमत दी है। पिछले लोकसभा चुनाव में भाजपा की भारी जीत ने जनता परिवार को एक साथ आने को मजबूर किया था, उसी मजबूरी में बिहार में जदयू, राजद और कांग्रेस का महागठबंधन बना। बिहार में महागठबंधन की भारी जीत के कारण ही नीतीश कुमार इस प्रयोग को यूपी में भी आजमाना चाहते हैं।

नए दल के सामने चुनौती

विलय के बाद जो भी दल अस्तित्व में आएगा उसके सामने चुनौती कम नहीं होगी। जदयू का जनाधार वोट लगभग न के बराबर है तो रालोद की पकड़ एक जाति विशेष वोट पर ही मानी जाती है। भाजपा, सपा और बसपा की तरह जदयू, रालोद और समाजवादी जनता दल के पास आधार वोट की कमी है। भाजपा, सपा और बसपा अभी से ही चुनावी तैयारी में जुटी है जबकि नए दल को वजूद में आने के बाद इसे खड़ा होने में ही काफी वक्त लगेगा। राज्य में अगर वोटों का सांप्रदायिक ध्रुवीकरण हुआ तो इस नए दल के लिए चुनौति और बढ़ जाएगी क्योंकि ऐसी स्थिति में मुस्लिम मतदाताओं का रूझान सपा या बसपा की ओर ज्यादा होगा।

बाबुलाल कुशवाहा पर होगी नजर

एनआरएचएम घोटाले के आरोपी और मायावती सरकार के पूर्व मंत्री बाबुलाल कुशवाहा जन अधिकार मोर्चा के बैनर तले रैलियां कर रहे हैं। उनकी रैलियों में उमड़ रही भीड़ बता रही है कि श्री कुशवाहा की कुशवाहा जाति के लोगों पर अच्छी पकड़ है। घोटाले में आरोपी होने के कारण नीतीश कुमार श्री कुशवाहा को अपने साथ लाने का जोखिम उठाएंगे, ऐसा नहीं लगता। लेकिन श्री कुशवाहा चुनाव में किस दल के साथ गठबंधन करेंगे, इस बात से भी चुनावी नतीजे प्रभावित होंगे। नीतीश कुमार जन अधिकार मोर्चा से ज्यादा पिस पार्टी से समझौता करने के लिए इच्छुक दिख रहे हैं।

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