अप्रैल 06, 2011

कितना सफल होगा मनमोहनी प्रयास?

रंजीत रंजन
भारत जब मोटेरा में आस्ट्रेलिया को हराकर सेमीफाइनल में पहुँच गया और ये साफ हो गया कि अगला मुकाबला चिर-प्रतिद्वंदी पाकिस्तान से होगा तब पूरी दुनिया की नज़र इस मुकाबले पर टिक गई. भारत और पाकिस्तान के क्रिकेट प्रेमी इस मैच का इंतजार करने लगे. मीडिया 24 में से 14 घंटे क्रिकेट पर खर्च करने लगा. मौके को भांपकर प्रधानमंत्री डा० मनमोहन सिंह ने क्रिकेट की पिच से कूटनीतिक गुगली फेंक दी और पाकिस्तान के प्रधानमंत्री यूसुफ़ रज़ा गिलानी को मैच देखने के लिए आमंत्रित कर लिया.
याद कीजिये वो दृश्य जब खेल शुरू होने के पहले दोनों देशों के प्रधानमंत्रियों ने मैदान पर दोनों टीमों के खिलाडियों से मिले. खुशनुमा माहौल में खेल समाप्त हुआ. दोनों प्रधानमंत्रियों के साथ-साथ दोनों देशों के लोग मैच का आनंद उठाये और बेहतर संबंधों के लिए दुआएं की. मगर सवाल यह है कि क्रिकेट के पिच से संबंधों को सुधारने का मनमोहनी प्रयास कितना सफल होगा?
प्रयास अच्छा है, लेकिन इतिहास के पन्नों में दर्ज कड़वी यादें और अनुभव आशंका पैदा करने के लिए काफी हैं. इससे पहले भी कई बार क्रिकेट कूटनीतिक प्रयास का हिस्सा बन चुका है. 1987 के विश्व कप के दौरान पाकिस्तान के तत्कालीन राष्ट्रपति जनरल ज़िया उल हक जयपुर आये थे. 2004 में भारतीय टीम पाकिस्तान दौरे पर थी तब राहुल गाँधी समेत कई कांग्रेसी नेताओं ने पाकिस्तान जाकर मैच देखा था. तत्कालीन राष्ट्रपति जनरल मुशर्रफ ने महेंद्र सिंह धोनी की ज़ुल्फों की तारीफ़ की थी. लेकिन इससे क्या भारत और पाकिस्तान के बीच सम्बन्ध सुधर गए?
बेशक नहीं! अब भी शायद ऐसा न हो. खेलों से यह उम्मीद करना भी नहीं चाहिए. खेल खेल है और खेल को खेल ही रहने देना चाहिए.
खेल के अलावा भी भारत ने कई बार पाकिस्तान से सम्बन्ध सुधारने का प्रयास किया है. 1998 में प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी बस से लाहौर गए थे. बदले में हमें क्या मिला- कारगिल युद्ध! इसके बावजूद हमने मुशर्रफ को आगरा बुलाया. इससे क्या मिला- कुछ नहीं! हम खुद संबंधों को तोड़ते भी हैं और फिर संबंधों को जोड़ने का प्रयास भी करते हैं. संसद पर हमले के बाद हमने पाकिस्तान से सभी प्रकार के सम्बन्ध तोड़ लिए थे. उसके बाद सम्बन्ध जोड़ने का प्रयास किसने किया- भारत ने! 26 /11 के बाद हमने फिर सारे सम्बन्ध तोड़ लिए. यह कहकर कि पाकिस्तान जब तक सीमा पार से आतंकवाद तथा घुसपैठ बंद नहीं करेगा तब तक उसके साथ कोई बातचीत नहीं होगी. मगर बातचीत का पहल किसने किया- भारत ने! क्या सीमा पर से आतंकवाद ख़त्म हो गए या घुसपैठ? प्रधानमंत्री को इस सवाल का जवाब देना चाहिए!
जहाँ तक मेरा विचार है विभिन्न प्रकार के घोटालों से घिरे प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह मोहाली मैच के बहाने लोगों का ध्यान घोटालों से भटकना चाहते थे जिसमे वे सफल भी हुए हैं. इस काम में मीडिया भी उनका क्या साथ निभाया है. और ये बात डा० सिंह को पता था कि मीडिया को क्रिकेटीय रोग लगा हुआ है, समाचार चैनलों से भ्रस्टाचार लगभग गायब है, ऐसे में इस पहल के द्वारा एक तीर से दो निशाना साधा जा सकता है. एक- लोग भ्रस्टाचार के मुद्दे से भटक जायेंगे और दूसरा अमेरिका दादा भी खुश हो जायेगा.
शर्म-अल-शेख तथा थिम्पू में भी दोनों देशों के प्रधानमंत्रियों के बीच मुलाकात व बातचीत हो चुकी है. इसके बाद विदेश सचिवों के बीच कई दौर की बातचीत हुई है. लेकिन बातचीत किन-किन मुद्दों पर हुई है, तथा कहाँ तक पहुंची है अब तक ख़बरें मीडिया में नहीं आई है. शायद भारत सरकार यहाँ भी विकीलीक्स के खुलासे का इंतज़ार कर रही है. भले ही पाकिस्तानी प्रधानमंत्री ने कहा है कि मनमोहन सिंह ने क्रिकेट देखने का निमंत्रण देकर विशाल ह्रदय का परिचय दिया है. वे शांति और सम्पन्नता के लिए कम करना चाहते हैं. लेकिन दुनिया जानती है कि पाकिस्तान में शासन इस्लामाबाद का नहीं रावलपिंडी स्थित सैन्य मुख्यालय का चलता है. ऐसे में गिलानी को बुलाकर सम्बन्ध सुधारने का पहल बेमानी है. और इस गन्दी राजनीति के बीच में बार-बार क्रिकेट को न लाया जाए तो ज्यादा बेहतर है . क्यूंकि राजनीति का असर खेलों पर पड़ता है लेकिन खेलों का असर राजनीति पर पड़ जाए ऐसा नहीं है. भारत और पाकिस्तान के बीच कई संवेदनशील मुद्दे हैं सुलझाने के लिए जिसे खेल-खेल में तो कतई नहीं सुलझाये जा सकते. और न ही यह एक दिवसीय क्रिकेट कि तरह है कि परिणाम एक दिन में आ जाए.

4 टिप्‍पणियां:

Unknown ने कहा…

खेल को खेल रहने देना चाहिए. इसे राजनीतिक रूप नहीं देना चाहिए!

Anju singh ने कहा…

bahut badiya ranjit...
apna najariya kafi behtar tareke se bataya hai aap ne...

Unknown ने कहा…

क्रिकेट को हमेशा कुटनीतिक प्रयास के लिए इस्तेमाल किया जाता है और संबंधों में खटास का खामियाजा भी क्रिकेट को ही भुगतना पड़ता है...क्या देश में और कोई खेल नहीं है जिसे प्रमोट किया जा सके. भर और पाकिस्तान दोनों का रास्ट्रीय खेल हॉकी है. तो फिर हॉकी कुटनीतिक प्रयास का माध्यम क्यूँ नहीं बन सकता?

KUMAR SHASHI VARDHAN ने कहा…

BAAT TO THEEK HAI.........PAR