नवंबर 29, 2008

गाँधी एक हीं था.

एक युवक,जो
बेटा है एक ऐसे घराने का
जिसके हाथो में रहती है
एक बड़े राजनीतिक दल की कमान
ख़ुद विदेशों में पढ़ाई करके
आता है भारत
और जुड़ता है
अपने परिवार के खानदानी पेशे से
निकल पड़ता है एक नया ढोंग रचने
भारत में ही भारत को खोजने
शायद,गाँधी बनने का ख्वाब है उसका
लेकिन उसे कौन समझाए
गाँधी एक हीं था
जो करता था

ट्रेन के तीसरे दर्जे में सफर
जिसे नहीं था मरने का डर
सिर्फ़ दलितों के घर खाना खा लेने से
कोई गाँधी नही हो जाता.


3 टिप्‍पणियां:

avi-pankaj ने कहा…

very heavy comments.

alka mishra ने कहा…

प्रिय बन्धु
जय हिंद
very good poem
ब्लॉग जगत में अपनी आमद दर्ज कराने का शुक्रिया सीधी चोट प्रभावशाली लगी
अगर आप अपने अन्नदाता किसानों और धरती माँ का कर्ज उतारना चाहते हैं तो कृपया मेरासमस्त पर पधारिये और जानकारियों का खुद भी लाभ उठाएं तथा किसानों एवं रोगियों को भी लाभान्वित करें

Unknown ने कहा…

आपकी इस लेखनी को क्या जबाव दूँ.....
बस लाजबाव..... सीधी चोट कम shabdon में......